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कविता

त्याग

प्रतिभा चौहान


प्रेम में सुकून को सजा देना
माना कि जायज है
पर साथी की नींद से खेलना भी तो एक बेईमानी है
क्या टिमटिमाती रातों को भी
सूरज का इंतजार रहता है
या कर देती है
अपना सब कुछ बलिदान
प्रेम में दिन के तारे को...
डोलते समुद्र की लंबी छोटी थिरकती लहरें
देती हैं बुलावा पहाड़ों की रानियों को
आगोश में मिटा देती हैं
अपनी हस्ती और अस्मिता भी
क्या प्रेम का दूसरा नाम नहीं यह...


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हिंदी समय में प्रतिभा चौहान की रचनाएँ